Wednesday, October 31, 2012

कर्फ्यू में है ढील


चलो सखी
सब्जी ले आएं
कर्फ्यू में है ढील ।

पांच मरे
पैंतालिस घायल
बोल रहे अखबार,
मुट्ठी भर की
आबादी में
गायब हैं दो-चार ;

कुत्ते रोएं रात
गगन में
चक्कर काटें चील ।

चच्चा के चेहरे
पर चुप्पी
दद्दू भी खामोश,
बरखुरदारों
की हरकत का
सिर पर ओढ़े दोष;

सिवईं उस घर से
आई ना
गई बताशा खील ।

लंबा रस्ता
ऊंची मंजिल
जाना तो था दूर,
किंतु आपसी
तकरारों ने
धो डाला सब नूर ;

पैंसठ पग में
हांफ रहे ज्यों
चले हजारों मील ।





( हमारे गृहजनपद अयोध्या (फैजाबाद) में 1992 में बाबरी ढांचा ढहाए जाने के बावजूद कोई जनहानि नहीं हुई थी। लेकिन 25 अक्तूबर, 2012 को दुर्गा मूर्ति विसर्जन के दौरान हुए साम्प्रदायिक दंगों के बाद वहां कर्फ्यू लगाना पड़ा । इसी दर्द से उपजा एक नवगीत 29 अक्तूबर, 2012 को लिखा गया ) 

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