ॐ
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माफ करना कौस्तुभ
जब दुश्मनों से तुम लड़े थे !
काम में उलझा रहा मैं
व्यस्त था वह दिन हमारा,
था जुलूसों का बवंडर
गगनभेदी एक नारा;
गोलियों से क्रूर अरि की
लाल जब तुम हो रहे थे,
'लाल' हमने भी किया था
उस दिवस ये शहर सारा।
जानते हो मित्र ! हम उस रोज
आरक्षण की खातिर,
टेंट में तपती दुपहरी
एक अनशन में पड़े थे !
जल रहा था शहर, मानो
हो धरा अंगार पर,
है कुठाराघात होता
आजकल 'अधिकार' पर ;
क्या पता तुम सैनिकों को
देश के हालात का,
कट रही है जिंदगी
यूँ जान लो, बस धार पर।
चार ही दिन तो हुए
यूनिवर्सिटी के प्रांगण में
'जंग-ए-आजादी' का परचम
लेके हम भी तो खड़े थे !
मर गए जिस देश की खातिर
भगत-आजाद-बिस्मिल,
जोड़ने की फिक्र में घुलते रहे
सरदार तिल-तिल ;
मित्र, ऊपर से दिखाई
दे रहा है एक लेकिन,
जुड़ न पाया आज तक भी
सैकड़ों टुकड़ों बँटा दिल ।
फिक्र जब तुम कर रहे थे
शत्रु के आघात की,
जात की चिंता लिए हम
आंदोलन पर अड़े थे।
- ओमप्रकाश तिवारी
(15 अक्टूबर, 2018)
(समुद्र मंथन के दौरान निकला 5वां रत्न था कौस्तुभ मणि। कौस्तुभ मणि को भगवान विष्णु धारण करते थे। देश की ऐसी ही अमूल्य मणि थे मुंबई के निकट मीरारोड निवासी मेजर कौस्तुभ राणे, जो अगस्त, 2018 में आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हो गए। नवगीत में उनके नाम का उपयोग एक प्रतीक के तौर पर सीमा पर तैनात और निरंतर शहीद हो रहे वीर सैनिकों के रूप में किया गया है। )