Friday, February 9, 2018

दशा कही ना जाय

एक तिहाई दूध बह गया
खाकर आज उबाल,
और पतीली की पेंदी में
चिपक गई है दाल ;

सूझे नहीं उपाय
समस्या नई-नई है।

सुबह दस बजे भोर हुई, औ
रात दस बजे शाम,
बित्ते भर के घर में दिखता
आज काम ही काम ;

मिली न ढंग की चाय
हेकड़ी निकल गई है।

बस पानी पी विदा ले चुके
कितने ही मेहमान,
कोस रहे हैं भूखे-प्यासे
घर बैठे भगवान ;

बिन दाने के आज
चिरैया लौट गई हैं।

सूर्य-चंद्र चल रहे यथावत्
ना आया भूचाल,
फिर भी बिगड़ी-बिगड़ी लगती
ग्रह-नक्षत्र की चाल ;

दशा कही ना जाय
घरैतिन गाँव गई हैं।

- ओमप्रकाश तिवारी