ॐ
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समझें एसी कमरे वाले
कैसे व्यथा किसान की !
कर्ज काढ़ कर बोया-जोता
फसलों की उम्मीद से,
पूस-माघ में खेत रखाया
जाग-जाग कर नींद से;
क्रुद्ध दृष्टि पड़ गई अंत में
विधि के क्रूर विधान की।
हरा-भरा था फसलों जैसा
कल तक मन परिवार का,
एक रात में दृश्य दिख रहा
देखो हाहाकार का ;
बेमौसम बरसात ले गई
फसलें सब अरमान की।
वादे तो सारे सरकारी
लगते हैं अब झूठ के,
बीमा-राहत चुटकी-चुटकी
जीरा मुँह में ऊँट के।
राहत नहीं, चाहिए हमको
रोटी बस सम्मान की।
- ओमप्रकाश तिवारी
22 मार्च, 2023
विक्रम संवत 2080, गुड़ी पड़वा