घूमिए
भारत सफारी ।
देखिए
महलों में रहते
दीमकों के ढेर हैं,
मूषकों की
बिल में दुबके
बैठे बब्बर शेर हैं;
घास खाकर
सो रही है,
सिंहनी घायल बेचारी ।
गिरगिटों की
हर प्रजाति
भी यहां मौजूद है,
घर बया का
बंदरों ने
किया नेस्तनाबूद है;
बाघ-चीते
कर रहे हैं
सियारों के घर बेगारी ।
दोमुँहे
साँपों की बस्ती
भी यहां आबाद है,
गर्दभों के
राग पर मिलती
हमेशा दाद है;
कोयलों के
सुर पे कौवों की
हुई अब तान भारी ।
लाल फीतों में बंधे
कितने ही
ऐरावत खड़े,
शुतुरमुर्गों
के यहां पर
शीश दिखते हैं गड़े;
लोमड़ी ने
राजरानी
की गजब पोशाक धारी ।
(30 मई, 2013)
Thursday, May 30, 2013
Saturday, May 18, 2013
खिड़कियाँ खोलो
खिड़कियाँ खोलो
हवा
ताजी मिलेगी ।
बंद दरवाजे
सभी
दीवार ऊँची,
एक कमरा
बन गया
दुनिया समूची;
इस घुटन में
जिंदगी
कैसे चलेगी ।
है सुखद
अनुभूति
दरिया की रवानी,
रुक गया तो
शीघ्र
सड़ जाता है पानी;
कुमुदिनी
निर्मल
सरोवर में खिलेगी।
मुस्कराओ
तुम
दिखाओ गर्मजोशी,
अजनबी भी
हो अगर
अपना पड़ोसी;
बर्फ तो कुछ
प्रेम
पाकर ही गलेगी ।
(18 मई, 2013)
हवा
ताजी मिलेगी ।
बंद दरवाजे
सभी
दीवार ऊँची,
एक कमरा
बन गया
दुनिया समूची;
इस घुटन में
जिंदगी
कैसे चलेगी ।
है सुखद
अनुभूति
दरिया की रवानी,
रुक गया तो
शीघ्र
सड़ जाता है पानी;
कुमुदिनी
निर्मल
सरोवर में खिलेगी।
मुस्कराओ
तुम
दिखाओ गर्मजोशी,
अजनबी भी
हो अगर
अपना पड़ोसी;
बर्फ तो कुछ
प्रेम
पाकर ही गलेगी ।
(18 मई, 2013)
Wednesday, May 8, 2013
मूल्य बिकते
मूल्य बिकते
कींमतों के
चढ़ रहे बाजार में ।
लोग बौने हैं
मगर
लंबी हुईं परछाइयाँ,
हैं शिखर पर
किंतु चारों ओर
दिखतीं खाइंयाँ ।
कल तलक
आदर्श थे जो,
आज कारागार में ।
है लगी
कीमत सभी की
बोल का भी मोल है,
जो बिके
वो ही खबर है
और सब बेमोल है ।
इश्तेहारों में
दबी, दिखती
खबर अखबार में ।
विश्व के
एकीकरण का
स्वप्न सब पाले हुए,
भाइयों के साथ
भोजन
की रसम टाले हुए ।
जल रहे हैं
चार चूल्हे,
एक ही परिवार में ।
ईद, होली
व दशहरा
या कि दीवाली रहे,
गले मिलना दूर
अब तो
जुबाँ भी खाली रहे ।
उँगलियों से
एक एसएमएस
भेजते त्यौहार में ।
(9 मई, 2013)
कींमतों के
चढ़ रहे बाजार में ।
लोग बौने हैं
मगर
लंबी हुईं परछाइयाँ,
हैं शिखर पर
किंतु चारों ओर
दिखतीं खाइंयाँ ।
कल तलक
आदर्श थे जो,
आज कारागार में ।
है लगी
कीमत सभी की
बोल का भी मोल है,
जो बिके
वो ही खबर है
और सब बेमोल है ।
इश्तेहारों में
दबी, दिखती
खबर अखबार में ।
विश्व के
एकीकरण का
स्वप्न सब पाले हुए,
भाइयों के साथ
भोजन
की रसम टाले हुए ।
जल रहे हैं
चार चूल्हे,
एक ही परिवार में ।
ईद, होली
व दशहरा
या कि दीवाली रहे,
गले मिलना दूर
अब तो
जुबाँ भी खाली रहे ।
उँगलियों से
एक एसएमएस
भेजते त्यौहार में ।
(9 मई, 2013)
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