रुख्सत होते जाएं
धर्मा जैसे कई किसान,
किंतु न टेढ़ी होने पाए
राजा जी की शान।
सत्ता बदले, नेता बदले
हो राहत का शोर,
किंतु न बदले अखबारों में
मौतों का स्कोर;
राज किसी का आए-जाए
स्थिति रहे समान।
जाने कब अधिग्रहण सूचना
दे निकाल सरकार,
फीता ले पटवारी आए
दे दे गहरी मार;
स्वेद बहाए जो धरती पर
उसकी सस्ती जान।
इधर कर्ज का बोझ चढ़ा है
उधर न मिलते भाव,
बेटी बढ़ती जाय कुँआरी
हँसता सारा गाँव;
माँ समझा मिट्टी को, उसमें
मिले आज अरमान।
- ओमप्रकाश तिवारी
धर्मा जैसे कई किसान,
किंतु न टेढ़ी होने पाए
राजा जी की शान।
सत्ता बदले, नेता बदले
हो राहत का शोर,
किंतु न बदले अखबारों में
मौतों का स्कोर;
राज किसी का आए-जाए
स्थिति रहे समान।
जाने कब अधिग्रहण सूचना
दे निकाल सरकार,
फीता ले पटवारी आए
दे दे गहरी मार;
स्वेद बहाए जो धरती पर
उसकी सस्ती जान।
इधर कर्ज का बोझ चढ़ा है
उधर न मिलते भाव,
बेटी बढ़ती जाय कुँआरी
हँसता सारा गाँव;
माँ समझा मिट्टी को, उसमें
मिले आज अरमान।
- ओमप्रकाश तिवारी