Sunday, June 3, 2018

विक्रम तू उत्तर दे

विक्रम तू उत्तर दे
सोचकर सवाल के,
वरना फिर जाएगा
बेतलवा डाल पे।
माना तू वीर बहुत
छप्पन का सीना है,
लेकिन क्या लाभ अगर
विष हमको पीना है;
अनुदानों की सूची
लेकर हम चाटें क्या ?
महंगाई के थप्पड़
पड़ते जब गाल पे !
माना तेरी खातिर
बातें ये छोटी हैं,
पर अपनी उम्मीदें
दाल-भात-रोटी हैं;
गणतंत्री मेहमानों
से उनको क्या लेना,
श्रम सीकर मोती से
हों जिनके भाल पे।
माना कि कागज़ पर
खेपें हैं सपनों की,
लेकिन कुछ ऊंची हैं
उम्मीदें अपनों की;
ग़र तेरी वंशी की
मोहकता कम होगी,
तो परजा नाचेगी
औरों की ताल पे ।
- ओमप्रकाश तिवारी

तटस्थ

सच बोलूँ !
जो ऋजुविहीन हैं
जुबाँहीन हैं
वे तटस्थ हैं!!


सूर्योदय से सूर्य अस्त तक
दिखती है बस
रोजी-रोटी,
नाम पड़ोसी का ना जानें
दुनिया इनकी
इतनी छोटी;

सिर्फ पेट की
चिंता में ही
बेचारे हो गए
पस्त हैं।

है बड़ा मुश्किल
हमेशा, सत्य का ही
साथ देना,
जान जोखिम में फंसाकर
डूबते को
हाथ देना ;

इसलिए
रहते वो
ऊहापोह में ही
त्रस्त हैं।

स्वहित रहे दुनिया से ऊपर
इस पर आँच
न आने पाए,
अपनी चर्बी रहे सलामत
चाहे देश
भाड़ में जाए;

बीवी से टीवी
तक फैले
अखिल विश्व में
आप मस्त हैं।

सच्चाई से आँख मूँदना
शायद है इनकी
मजबूरी,
ज्ञान बहुत है बघारने को
पर विवाद से
रखते दूरी ;

निर्णय की
स्थिति आने पर
बेचारे खाते
शिकस्त हैं।

स्वार्थसिद्धि जिस ओर
महाशय को देखा
झुकते उस बाजू,
सुविधा के अनुसार मियाँ का
झुक जाता है
सदा तराजू ;

वतनपरस्ती
के चोले में
ये जनाब बस
धन-परस्त हैं।
- ओमप्रकाश तिवारी