चाहे जितने चैनल बदलो
दिखता सिर्फ बवाल ।
दुराचार से सुबह शुरू हो
हत्याओं से शाम,
घोटालों पर बहस निरर्थक
चलना है अब आम ;
दिखता सिर्फ बवाल ।
दुराचार से सुबह शुरू हो
हत्याओं से शाम,
घोटालों पर बहस निरर्थक
चलना है अब आम ;
जिधर देखिए टोपी बदले
दिखें केजरीवाल ।
सास बहू की कथा बदलती
रोज नया इक रंग,
जोरू लखनलाल की भागे
रामचंद्र के संग ;
बात बात पर बहू ठोंकती
सासू जी से ताल ।
ज्योतिश पारंगत सुंदरियां
दिखें पलटती ताश,
कहीं खिलाएं निर्मल बाबा
हमें समोसा-सॉस;
कथा बांचकर पीट रहे हैं
लोग दनादन माल ।
दिखें केजरीवाल ।
सास बहू की कथा बदलती
रोज नया इक रंग,
जोरू लखनलाल की भागे
रामचंद्र के संग ;
बात बात पर बहू ठोंकती
सासू जी से ताल ।
ज्योतिश पारंगत सुंदरियां
दिखें पलटती ताश,
कहीं खिलाएं निर्मल बाबा
हमें समोसा-सॉस;
कथा बांचकर पीट रहे हैं
लोग दनादन माल ।
( 19 अक्तूबर, 2012 को रचित )
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