Wednesday, October 31, 2012

दिखता सिर्फ बवाल

चाहे जितने चैनल बदलो
दिखता सिर्फ बवाल ।

दुराचार से सुबह शुरू हो
हत्याओं से शाम,
घोटालों पर बहस निरर्थक
चलना है अब आम ;

जिधर देखिए टोपी बदले
दिखें केजरीवाल ।

सास बहू की कथा बदलती
रोज नया इक रंग,
जोरू लखनलाल की भागे
रामचंद्र के संग ;

बात बात पर बहू ठोंकती
सासू जी से ताल ।

ज्योतिश पारंगत सुंदरियां
दिखें पलटती ताश,
कहीं खिलाएं निर्मल बाबा
हमें समोसा-सॉस;

कथा बांचकर पीट रहे हैं
लोग दनादन माल । 





( 19 अक्तूबर, 2012 को रचित ) 

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