आए घन
भइ
मंद पवन
पर
झुलस रहा तन-मन
बरसें मेघ सघन ।
घर सूना
दिन-रातें सूनी
प्रिय बिन
सारी बातें सूनी
काटे घन गर्जन ।
दामिनि दे दुख
छूकर अंतर
दादुर धुन भी
मारे मंतर
दुखती
शीत पवन ।
( अगस्त, 1990 में रचित)
भइ
मंद पवन
पर
झुलस रहा तन-मन
बरसें मेघ सघन ।
घर सूना
दिन-रातें सूनी
प्रिय बिन
सारी बातें सूनी
काटे घन गर्जन ।
दामिनि दे दुख
छूकर अंतर
दादुर धुन भी
मारे मंतर
दुखती
शीत पवन ।
( अगस्त, 1990 में रचित)
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