Wednesday, October 31, 2012

बरसें मेघ सघन

आए घन
भइ
मंद पवन
पर
झुलस रहा तन-मन
बरसें मेघ सघन ।

घर सूना
दिन-रातें सूनी
प्रिय बिन
सारी बातें सूनी
काटे घन गर्जन ।

दामिनि दे दुख
छूकर अंतर
दादुर धुन भी
मारे मंतर
दुखती
शीत पवन ।

( अगस्त, 1990 में रचित)


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