अपने सपनों की
दुनिया इतनी छोटी है,
सिर पर छत एक, और
दाल-भात-रोटी है।
बस इतना चाह रहे
मेहनत का मोल मिले,
बच्चों का मुरझाया चेहरा
ज्यों फूल खिले ;
किंतु आस इतनी भी
पूर्ण नहीं होती है।
तुम आकर पांच बरस
में देते आश्वासन,
पर जुमला बन जाता
जाते ही वह भाषण ;
जाने क्यों बंधु लगे
नीयत ही खोटी है।
हमने कब चाँद और
तारों की माँग करी,
कब छप्पन भोग और
कब माँगा सूप-करी ;
वादों में तुमने ही
बाँटी तो बोटी है।
- ओमप्रकाश तिवारी
(08 दिसंबर, 2018)
दुनिया इतनी छोटी है,
सिर पर छत एक, और
दाल-भात-रोटी है।
बस इतना चाह रहे
मेहनत का मोल मिले,
बच्चों का मुरझाया चेहरा
ज्यों फूल खिले ;
किंतु आस इतनी भी
पूर्ण नहीं होती है।
तुम आकर पांच बरस
में देते आश्वासन,
पर जुमला बन जाता
जाते ही वह भाषण ;
जाने क्यों बंधु लगे
नीयत ही खोटी है।
हमने कब चाँद और
तारों की माँग करी,
कब छप्पन भोग और
कब माँगा सूप-करी ;
वादों में तुमने ही
बाँटी तो बोटी है।
- ओमप्रकाश तिवारी
(08 दिसंबर, 2018)
No comments:
Post a Comment