यह सदी इक्कीसवीं का
नया हिंदुस्तान है।
दो में गेहूँ
तीन में चावल
हुआ इफरात है,
और
मनरेगा बदौलत
शाम भी 'आबाद' है ;
अब खुदा के ओहदे पर
जमा ग्राम प्रधान है।
नौजवाँ को चाहिए
बस नौकरी
सरकार की,
फिक्र
वेतन से अधिक है
ऊपरी दो-चार की ;
घाघ से बिल्कुल उलट
अब सोचता इंसान है।
है महानगरों में
बिगड़ी
और भी दिखती दशा,
घुन बना
है खा रहा अब
नौनिहालों को नशा ;
ये चलन ही देश का
सबसे बड़ा नुकसान है।
- ओमप्रकाश तिवारी
(06 दिसंबर, 2018)
नया हिंदुस्तान है।
दो में गेहूँ
तीन में चावल
हुआ इफरात है,
और
मनरेगा बदौलत
शाम भी 'आबाद' है ;
अब खुदा के ओहदे पर
जमा ग्राम प्रधान है।
नौजवाँ को चाहिए
बस नौकरी
सरकार की,
फिक्र
वेतन से अधिक है
ऊपरी दो-चार की ;
घाघ से बिल्कुल उलट
अब सोचता इंसान है।
है महानगरों में
बिगड़ी
और भी दिखती दशा,
घुन बना
है खा रहा अब
नौनिहालों को नशा ;
ये चलन ही देश का
सबसे बड़ा नुकसान है।
- ओमप्रकाश तिवारी
(06 दिसंबर, 2018)
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