Thursday, December 6, 2018

ड्रामा

इस ड्रामे का
प्रथम नियम है,
इसमें पर्दा नहीं खुलेगा।
दर्शकगण
नाचें-गाएंगे
चिल्लाएंगे-झल्लाएंगे,
ज्यादा से ज्यादा
क्या होगा ?
कुर्सी पर से उठ जाएंगे !
किंतु देखना
नाट्यगार से
कोई बंदा नहीं हिलेगा।
रोचकता से
भरा हुआ है,
दर्शकमंडल डरा हुआ है,
चरमबिंदु पर
पता चल रहा
सूत्रधार तो मरा हुआ है ;
जिसको नायक
मान लिया वह,
सबको छाती ठोंक छलेगा।
जिस पर्दे को
देख रहे हो,
उसके पीछे ही है ड्रामा,
कोई है
'कुलीन' अभिमन्यु
तो कोई है शकुनी मामा ;
'लोक' द्रौपदी को
इस युग में
सखा कृष्ण अब नहीं मिलेगा।
- ओमप्रकाश तिवारी
( 6 दिसंबर, 2018)

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