Sunday, August 13, 2023

लॉक डाउन

माना कि 

मन में कुछ डर है,
लेकिन धरती - आसमान में
दिखता कुछ तो
अति सुंदर है।

सुबह-सुबह 
कोयल की कू - कू
महानगर में अचरज सी थी,
सच कहता हूँ
बालकनी में
आकर गौरैया बैठी थी;

बीचोबीच 
शहर में जैसे
मेरे बचपन वाला घर है।

नदिया का जल
साफ हो गया
वायु प्रदूषण हाफ हो गया,
दुर्घटना में
मरने वालों 
का भी बेहतर ग्राफ़ हो गया;

स्याह दिखाई
देता था जो,
दिखता वह नीला अम्बर है।

सुबह रही ना
हड़बड़ वाली,
चलते-चलते वाली थाली,
बैठ पिता-माता
के संग अब
पीते गरम चाय की प्याली;

बेटे के घर में
रहने से,
भ्रम होता वह गया सुधर है।

- ओमप्रकाश तिवारी
( 6 अप्रैल, 2020 )

(लॉक डाउन के 12 दिन गुजरते ही जालंधर से हिमालय पर्वत दिखाई देने, दिल्ली में यमुना के साफ हो जाने और मुंबई में तेंदुए के सड़क पर घूमने की खबरें आने लगीं, तो 6 अप्रैल को यह नवगीत बना था। )

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