महानगर के
गलियारों में
मरघट जैसा सन्नाटा है।
दूर-दूर से
छिटके-छिटके
लोग कर रहे हैं गुडमॉर्निंग,
मिलना-जुलना
सख्त मना है
जारी है सरकारी वार्निंग;
एक अदृश्य
अनोखे भय ने
जन को जन से ही बाँटा है।
लोग कह रहे
बीमारी है
जिससे कायनात हारी है,
पीएम से सीएम तक
सबके
चेहरों पर दहशत तारी है;
प्रगतिशीलता
के गालों पर
यह तो कुदरत का चाँटा है।
एक मुनादी
पर थम बैठे
सारी दुनिया के कल-पुर्जे,
शायद मानव
चुका रहा है
आज प्रकृति के सारे कर्जे;
गीला कंगाली में
दिखता
महाशक्तियों का आटा है।
- ओमप्रकाश तिवारी
(30 मार्च, 2020)
(30 मार्च को लॉक डाउन का प्रथम चरण शुरू हुए एक सप्ताह ही हुए थे, और मुंबई सायँ-सायँ कर रही थी। तब यह नवगीत अपने आप बन पड़ा था)
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