Tuesday, August 13, 2013

बदला मेरा गाँव रे


बदले लोग
जमाना बदला
बदला मेरा गाँव रे ।

भाई का
प्रवेश वर्जित है
भाई की ही देहरी में,
पट्टीदारों से
होती है अब
जय राम कचहरी में ;

बंद हो गई
दुआ - पैलगी
भारी छूना पाँव रे ।

नहीं अखाड़ा
कुश्ती - बैठक
ना होती अब दौड़ है,
इक -दूजे की
उन्नति खटके
गिरने की होड़ है ;

रेफ़री थानेदार
दफ़ाओं से
खेलें सब दाँव रे ।

मुंशी जी की
मार अभी तक
बाबूजी को याद है,
वो कहते हैं
उसके कारण
घर उनका आबाद है ;

अब शिक्षक
खुद बचते घूमें
दिखे अधर में नाव रे । 

भरी दुपहरी
अजनबियों की
गुड़ संग बुझती प्यास थी,
आधी रात
बटोही आए
दो रोटी की आस थी ;

सिमट गया घर
रिश्तेदारों
की ख़ातिर न ठाँव रे ।

( 14 अगस्त, 2013) 

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