Thursday, August 1, 2013

कौरव कुल

कौन कह रहा
द्वापर में ही
कौरव कुल का नाश हुआ ।

वही पिताश्री
बिन आँखों के
माताश्री
पट्टी बाँधे,
ढो-ढो
पुत्रमोह की थाती
दुखते दोनों
के काँधे ;

उधर न्याय की
आस लगाये
अर्जुन सदा निराश हुआ ।

नकुल और
सहदेव सरीखे
भाई के भी
भाव गिरे,
दुर्योधन जी
राजमहल में
दुस्साशन से
रहें घिरे ;

जिसमें जितने
दुर्गुण ज्यादा
वह राजा का ख़ास हुआ ।

चालें वही
शकुनि की दिखतीं
चौपड़ के
नकली पाशे,
नहीं मयस्सर
चना-चबेना
दूध - मलाई
के झांसे ;

चंडालों की
मजलिस  में जा
सदा युधिष्ठिर दास हुआ ।

भीष्म - द्रोण
सत्ता के साथी
अपने-अपने
कारण हैं,
रक्षाकवच
नीति के सबने
किये बख़ूबी
धारण हैं ;

सच कहने पर
चचा विदुर को
दिखे आज वनवास हुआ ।

(1 अगस्त, 2013)



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