Wednesday, August 14, 2013

आज पंद्रह अगस्त है

उठो उठो श्रीमान
आज पंद्रह अगस्त है ।

सरसठ की हो गई
आज बूढ़ी आज़ादी,
सोई चद्दर तान
दिखे पूरी आबादी ;

सीमाओं पर लगातार
मिलती शिकस्त है ।

अंदर-बाहर सभी तरफ
ख़तरा ही ख़तरा,
पानी सा हो गया
लहू का कतरा-कतरा

लालकिले वाला वक्ता
भी दिखे पस्त है ।

लूट रहे वो जिन्हें
आपने चुनकर भेजा,
देख देश की दशा
फटा जा रहा कलेजा ;

नौजवान अपनी दुनिया में
हुआ मस्त है ।

भले रुलाए प्याज
खून के हमको आँसू,
लिखे जा रहे उन्नति के
नारे नित धाँसू ;

कहाँ शिकायत करें
हवा भी हुई भ्रष्ट है।

(15 अगस्त, 2013)

No comments:

Post a Comment