उठो उठो श्रीमान
आज पंद्रह अगस्त है ।
सरसठ की हो गई
आज बूढ़ी आज़ादी,
सोई चद्दर तान
दिखे पूरी आबादी ;
सीमाओं पर लगातार
मिलती शिकस्त है ।
अंदर-बाहर सभी तरफ
ख़तरा ही ख़तरा,
पानी सा हो गया
लहू का कतरा-कतरा
लालकिले वाला वक्ता
भी दिखे पस्त है ।
लूट रहे वो जिन्हें
आपने चुनकर भेजा,
देख देश की दशा
फटा जा रहा कलेजा ;
नौजवान अपनी दुनिया में
हुआ मस्त है ।
भले रुलाए प्याज
खून के हमको आँसू,
लिखे जा रहे उन्नति के
नारे नित धाँसू ;
कहाँ शिकायत करें
हवा भी हुई भ्रष्ट है।
(15 अगस्त, 2013)
आज पंद्रह अगस्त है ।
सरसठ की हो गई
आज बूढ़ी आज़ादी,
सोई चद्दर तान
दिखे पूरी आबादी ;
सीमाओं पर लगातार
मिलती शिकस्त है ।
अंदर-बाहर सभी तरफ
ख़तरा ही ख़तरा,
पानी सा हो गया
लहू का कतरा-कतरा
लालकिले वाला वक्ता
भी दिखे पस्त है ।
लूट रहे वो जिन्हें
आपने चुनकर भेजा,
देख देश की दशा
फटा जा रहा कलेजा ;
नौजवान अपनी दुनिया में
हुआ मस्त है ।
भले रुलाए प्याज
खून के हमको आँसू,
लिखे जा रहे उन्नति के
नारे नित धाँसू ;
कहाँ शिकायत करें
हवा भी हुई भ्रष्ट है।
(15 अगस्त, 2013)
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