Tuesday, November 13, 2012

माते, क्यों रूठी हो हमसे

माते ! क्यों रूठी हो हमसे ।

पहले हफ्ते देर से आना
दस दिन के भीतर चुक जाना
दूध और पेपरवाले को
कल आना, कहकर टरकाना ;

कैसे करूँ गुजारा कम से ।

जब आती राशन की बारी
ड्योढ़ी रहती सदा उधारी
नया नियम है घरवाली का
हफ्ते में दो दिन तरकारी ;

पाँव गए हैं जैसे थम से ।

बिल्कुल बंद घूमना-फिरना
भाव गैस के सुनकर गिरना
दूध-दही तो अय्याशी है
तेल-फुलेल चढ़े अब सिर ना;

जूझूँ महंगाई के तम से ।

(दीपावली के पर्व 13 नवंबर, 2012 को माँ लक्ष्मी से शिकायत करते हुए) 

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