माते ! क्यों रूठी हो हमसे ।
पहले हफ्ते देर से आना
दस दिन के भीतर चुक जाना
दूध और पेपरवाले को
कल आना, कहकर टरकाना ;
कैसे करूँ गुजारा कम से ।
जब आती राशन की बारी
ड्योढ़ी रहती सदा उधारी
नया नियम है घरवाली का
हफ्ते में दो दिन तरकारी ;
पाँव गए हैं जैसे थम से ।
बिल्कुल बंद घूमना-फिरना
भाव गैस के सुनकर गिरना
दूध-दही तो अय्याशी है
तेल-फुलेल चढ़े अब सिर ना;
जूझूँ महंगाई के तम से ।
(दीपावली के पर्व 13 नवंबर, 2012 को माँ लक्ष्मी से शिकायत करते हुए)
No comments:
Post a Comment