Saturday, December 13, 2014

आर्यपुत्र, कुछ कर दिखलाओ

आर्यपुत्र
कुछ कर दिखलाओ।


लड्डू खाते रामलला को
सीता ने भी नहीं वरा था,
ना ही दशरथपुत्र नाम पर
उनका प्रेमसिंधु उमड़ा था;
वरमाला तो तभी पड़ी जब
वर का शौर्य दिखा सीता को,
और धनुष शिव का खंडित हो
जनक सभा के बीच पड़ा था।

धनुष-वनुष तुम क्या तोड़ोगे
वो युग कबके बीत गए,
जा करके सब्जी ले आओ।

सिय ने एक बार बोला प्रभु
सारंग लेकर दौड़ पड़े थे,
बियाबान की तकलीफों से भी
वह बिल्कुल नहीं डरे थे;
मायामृग की चतुर चाल में
भले राम जी छले गए,
अर्द्धांगिनि का मन रखने में
पर वह पीछे नहीं खड़े थे।

मृगछाला का लोभ बुरा
मैं वो तुमसे न माँग रही,
एक अंगूठी ही ले आओ।

सोचो सिय ने किस मुश्किल से
अपना धर्म निभाया होगा,
दुष्ट दशानन के हाथों से
अपना सत्व बचाया होगा;
वीर राम की छवि उर में ले
और सहारा तिनके का,
पटरानी बनने का ऑफर
रावण को ठुकराया होगा।

कनक भवन वह अवध सरीखा
तुम क्या दिलवा पाओगे,
एक फ्लैट ही बुक करवाओ ।

- ओमप्रकाश तिवारी

(7 दिसंबर, 2014)

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