अखबारों में समाचार है,
उल्लू बैठा डार-डार है ।
देश दिखाई देता दुखिया,
लूट सके जो वो है सुखिया,
लाचारी में शीश झुकाए,
बैठा दिखे मुल्क का मुखिया ;
चुने हुए राजा-रानी से,
लोकतंत्र ही शर्मसार है ।
एक समय था गुल्ली-डंडा,
खेल बना अब चोखा धंधा,
रहो खेलते मनमानी से,
जब तक गले पड़े न फंदा;
राजनीति के खिलाड़ियों से,
खेल स्वयं ही गया हार है।
विकीलीक्स का नया खुलासा,
सुनकर होती बड़ी निराशा,
चौसर भले बिछी हो अपनी,
पश्चिम फेंक रहा है पासा;
शायद इसीलिए दिखती अब,
लोकतंत्र की मुड़ी धार है।
( 09 नवंबर, 2013)
उल्लू बैठा डार-डार है ।
देश दिखाई देता दुखिया,
लूट सके जो वो है सुखिया,
लाचारी में शीश झुकाए,
बैठा दिखे मुल्क का मुखिया ;
चुने हुए राजा-रानी से,
लोकतंत्र ही शर्मसार है ।
एक समय था गुल्ली-डंडा,
खेल बना अब चोखा धंधा,
रहो खेलते मनमानी से,
जब तक गले पड़े न फंदा;
राजनीति के खिलाड़ियों से,
खेल स्वयं ही गया हार है।
विकीलीक्स का नया खुलासा,
सुनकर होती बड़ी निराशा,
चौसर भले बिछी हो अपनी,
पश्चिम फेंक रहा है पासा;
शायद इसीलिए दिखती अब,
लोकतंत्र की मुड़ी धार है।
( 09 नवंबर, 2013)
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