Saturday, November 9, 2013

अखबारों में समाचार है

अखबारों में समाचार है,
उल्लू बैठा डार-डार है ।

देश दिखाई देता दुखिया,
लूट सके जो वो है सुखिया,
लाचारी में शीश झुकाए,
बैठा दिखे मुल्क का मुखिया ;

चुने हुए राजा-रानी से,
लोकतंत्र ही शर्मसार है ।

एक समय था गुल्ली-डंडा,
खेल बना अब चोखा धंधा,
रहो खेलते मनमानी से,
जब तक गले पड़े न फंदा;

राजनीति के खिलाड़ियों से,
खेल स्वयं ही गया हार है।

विकीलीक्स का नया खुलासा,
सुनकर होती बड़ी निराशा,
चौसर भले बिछी हो अपनी,
पश्चिम फेंक रहा है पासा;

शायद इसीलिए दिखती अब,
लोकतंत्र की मुड़ी धार है।

( 09 नवंबर, 2013)

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