क्षमा करो सरदार
कहाँ से
लोहा लाएँ हम !
वर्षों पहले
बेच चुके हम
बाबा वाले बैल,
आज किराये
के ट्रैक्टर से
होते हैं सब खेल;
मुठिया पकड़
खेत में घूमे,
किसमें इतना दम !
न बढ़ई की
खट-खट गूँजे
न कुछ गढ़े लुहार,
जाने कब की
जंग खा चुकी
है कुदाल की धार;
भला चलाए
कौन फावड़ा,
कमर गई है जम !
दूध पाउडर का
लाते हैं
नहीं पालते भैंस,
आजी बिन
कंडा न पथता
घर में जलती गैस;
खुरपा-खुरपी
वाला भी अब
काम रह गया कम !
हाथ कबाड़ी
के बेचे सब
खेती के औजार,
अधिया पर
दे खेत शहर में
करते लोग बेगार;
पाले हैं
तो पाले रहिए,
आप प्रगति का भ्रम !
(29 नवंबर, 2013)
नोटः गुजरात में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के निर्माण हेतु देश भर से कृषि औजार इकट्ठा करने की बात हो रही है। इसी संदर्भ को ध्यान में रखते हुए सरदार पटेल से क्षमा याचना सहित इस कविता का उद्भव हुआ है।
कहाँ से
लोहा लाएँ हम !
वर्षों पहले
बेच चुके हम
बाबा वाले बैल,
आज किराये
के ट्रैक्टर से
होते हैं सब खेल;
मुठिया पकड़
खेत में घूमे,
किसमें इतना दम !
न बढ़ई की
खट-खट गूँजे
न कुछ गढ़े लुहार,
जाने कब की
जंग खा चुकी
है कुदाल की धार;
भला चलाए
कौन फावड़ा,
कमर गई है जम !
दूध पाउडर का
लाते हैं
नहीं पालते भैंस,
आजी बिन
कंडा न पथता
घर में जलती गैस;
खुरपा-खुरपी
वाला भी अब
काम रह गया कम !
हाथ कबाड़ी
के बेचे सब
खेती के औजार,
अधिया पर
दे खेत शहर में
करते लोग बेगार;
पाले हैं
तो पाले रहिए,
आप प्रगति का भ्रम !
(29 नवंबर, 2013)
नोटः गुजरात में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के निर्माण हेतु देश भर से कृषि औजार इकट्ठा करने की बात हो रही है। इसी संदर्भ को ध्यान में रखते हुए सरदार पटेल से क्षमा याचना सहित इस कविता का उद्भव हुआ है।
बहुत सुंदर.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (30-11-2013) "सहमा-सहमा हर इक चेहरा" “चर्चामंच : चर्चा अंक - 1447” पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
बहुत सार्थक एवं सन्देश प्रद रचना ..
ReplyDeleteविकास के नाम पर हम कहाँ जा रहे हैं...बहुत सुन्दर...
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