चॉकलेट
कम खाई मैंने,
लेकिन पाया
माँ का प्यार ।
घर में रहनेवाली
माँ थीं,
घर ही था
उनका संसार,
हँसते-हँसते
दिनभर खटतीं
लगी गृहस्थी
कभी न भार
गरम पराठे
दूध-मलाई,
फिर भी नखरे
मेरे हजार ।
न आया का
दूध चुराना
न मेरे
हिस्से का खाना,
खुद ही
उबटन-तेल लगाकर
थपकी देकर
मुझे सुलाना
पल भर को भी
बाहर जाऊँ,
तो आने तक
तकतीं द्वार ।
नहीं बोर्डिंग का
सुख पाया
न पड़ोस में
समय बिताया,
क्रेच व बेबी सिटिंग
कहाँ थे
था माँ के
आँचल का साया
जन्मदिवस पर
केक न काटा,
किंतु गुलगुलों
की भरमार ।
( 16 मार्च, 2013)
Aapki is kavita ne maa Ki yaad dila di .... Sunder rachna .
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