रोटी, कपड़ा और मकान
नहीं चाहिए वारे - न्यारे
नील गगन के चम-चम तारे
आश्वासन भी शीशमहल के
अपनी थैली में रख प्यारे
ला सकती हैं छोटी चीजें
मेरे चेहरे पर मुस्कान
संसद-सत्ता तुम्हें मुबारक
मोटर-बत्ती के तुम धारक
सिंहासन पर जमे रहो तुम
लोकतंत्र के बन उद्धारक
किंतु हो सके तो गरीब से
मत लो उसका धान–पिसान
पगडण्डी व सड़क तुम्हारी
ऊँची कॉलर कड़क तुम्हारी
रहे सलामत राजा साहेब
दबंगई व हड़क तुम्हारी
फसल चरो तो चरो साथ क्यूं
ले जाते हो तोड़ मचान
समझ रही है जनता सारी
लगी देश को जो बीमारी
अगर रहनुमा न समझे तो
समझाएगी बारी - बारी
चेत सको तो चेतो वरना
हो जाएगी बंद दुकान
समझ रही है जनता सारी
लगी देश को जो बीमारी
अगर रहनुमा न समझे तो
समझाएगी बारी - बारी
चेत सको तो चेतो वरना
हो जाएगी बंद दुकान
( 4 दिसंबर, 2012- संसद में एफडीआई पर चल रही
रोचक बहस को सुनते हुए )
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