जंग लग रहा संबंधों में
झाड़ो-पोछो
पुनः जिलाओ।
माँ से बात हुए कितने दिन
बीत गए
कुछ याद नहीं,
छोटा भाई क्या करता है
यही बड़े को
ज्ञात नहीं ;
कम से कम रविवार सुबह तो
इन अपनों को
फ़ोन मिलाओ।
स्कूलों के दिन भी क्या थे
याद कीजिए
वह साथी,
इंटरवल में जिसका डिब्बा
क्लास छीनकर
थी खाती ;
अच्छा हो, इक रोज बुलाकर
गप्प मारो
कुछ खिलाओ।
रोज पाक को गाली देते
नीति देश की
कोस रहे,
बगल फ्लैट में कौन रह रहा
नहीं किसी को
होश रहे ;
कभी पड़ोसी को 'बेमतलब'
किसी शाम तो
चाय पिलाओ।
- ओमप्रकाश तिवारी
झाड़ो-पोछो
पुनः जिलाओ।
माँ से बात हुए कितने दिन
बीत गए
कुछ याद नहीं,
छोटा भाई क्या करता है
यही बड़े को
ज्ञात नहीं ;
कम से कम रविवार सुबह तो
इन अपनों को
फ़ोन मिलाओ।
स्कूलों के दिन भी क्या थे
याद कीजिए
वह साथी,
इंटरवल में जिसका डिब्बा
क्लास छीनकर
थी खाती ;
अच्छा हो, इक रोज बुलाकर
गप्प मारो
कुछ खिलाओ।
रोज पाक को गाली देते
नीति देश की
कोस रहे,
बगल फ्लैट में कौन रह रहा
नहीं किसी को
होश रहे ;
कभी पड़ोसी को 'बेमतलब'
किसी शाम तो
चाय पिलाओ।
- ओमप्रकाश तिवारी
No comments:
Post a Comment