Sunday, June 3, 2018

विक्रम तू उत्तर दे

विक्रम तू उत्तर दे
सोचकर सवाल के,
वरना फिर जाएगा
बेतलवा डाल पे।
माना तू वीर बहुत
छप्पन का सीना है,
लेकिन क्या लाभ अगर
विष हमको पीना है;
अनुदानों की सूची
लेकर हम चाटें क्या ?
महंगाई के थप्पड़
पड़ते जब गाल पे !
माना तेरी खातिर
बातें ये छोटी हैं,
पर अपनी उम्मीदें
दाल-भात-रोटी हैं;
गणतंत्री मेहमानों
से उनको क्या लेना,
श्रम सीकर मोती से
हों जिनके भाल पे।
माना कि कागज़ पर
खेपें हैं सपनों की,
लेकिन कुछ ऊंची हैं
उम्मीदें अपनों की;
ग़र तेरी वंशी की
मोहकता कम होगी,
तो परजा नाचेगी
औरों की ताल पे ।
- ओमप्रकाश तिवारी

No comments:

Post a Comment