विक्रम तू उत्तर दे
सोचकर सवाल के,
वरना फिर जाएगा
बेतलवा डाल पे।
सोचकर सवाल के,
वरना फिर जाएगा
बेतलवा डाल पे।
माना तू वीर बहुत
छप्पन का सीना है,
लेकिन क्या लाभ अगर
विष हमको पीना है;
छप्पन का सीना है,
लेकिन क्या लाभ अगर
विष हमको पीना है;
अनुदानों की सूची
लेकर हम चाटें क्या ?
महंगाई के थप्पड़
पड़ते जब गाल पे !
लेकर हम चाटें क्या ?
महंगाई के थप्पड़
पड़ते जब गाल पे !
माना तेरी खातिर
बातें ये छोटी हैं,
पर अपनी उम्मीदें
दाल-भात-रोटी हैं;
बातें ये छोटी हैं,
पर अपनी उम्मीदें
दाल-भात-रोटी हैं;
गणतंत्री मेहमानों
से उनको क्या लेना,
श्रम सीकर मोती से
हों जिनके भाल पे।
से उनको क्या लेना,
श्रम सीकर मोती से
हों जिनके भाल पे।
माना कि कागज़ पर
खेपें हैं सपनों की,
लेकिन कुछ ऊंची हैं
उम्मीदें अपनों की;
खेपें हैं सपनों की,
लेकिन कुछ ऊंची हैं
उम्मीदें अपनों की;
ग़र तेरी वंशी की
मोहकता कम होगी,
तो परजा नाचेगी
औरों की ताल पे ।
मोहकता कम होगी,
तो परजा नाचेगी
औरों की ताल पे ।
- ओमप्रकाश तिवारी
No comments:
Post a Comment