Tuesday, June 20, 2017

आभासी दुनिया

आभासी है सारी दुनिया
आभासी बाजार,
आभासी रिश्तों में अब तो
मगन दिखे संसार।

हुआ सवेरा पहला दर्शन
मोबाइल के नाम,
आभासी मित्रों से चर्चा
याद न आएं राम ;
गरम चाय की प्याली से ले
गुलदस्तों की भेंट,
और साथ में दुनिया भर के
मंत्रों की भरमार !

माँ-बापू की फ़िक्र किसे अब
बच्चे भी हैरान,
बस मोबाइल पर रहता है
पापा जी का ध्यान ;
वही वाट्सअप-वही फेसबुक
वही-वही ईृ-मेल,
वहीं मने होली-दीवाली
और सभी त्यौहार !

ना मंडी की रही जरूरत
ना जाना दूकान,
एक अंगूठा माल चुन रहा
दूजा दे भुगतान ;
चार इंच के मोबाइल पर
अब है पूरा मॉल,
जहाँ न कोई मोलभाव है
ना दे कोई उधार !

(20 जन, 2017) 

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