Saturday, November 5, 2016

चाटा अपने गाल पर

जैसे कोई
मार रहा हो
चाटा अपने गाल पर।
बेलगाम जिह्वा की हरकत
बुद्धि हुई पाषाण,
आँखों से आँसू की धारा
रोएं जैसे राँड़,
नाच रहे ये
किन्नर जैसे
पड़ोसियों की ताल पर।
माँ का दूध पिया है या फिर
हैं विष सींची बेल,
इन लोगों के लिए देश भी
राजनीति का खेल,
असर न होता
किसी बात का
इनकी मोटी खाल पर।
श्वेत वसन कपटी स्वभाव है
इन्हें न जानो हंस,
दूध पिलाते रहो सर्प को
पर वह देगा दंश,
इन्हें फिसलते
देखा सबने
सत्ता, सुविधा, माल पर।
- ओमप्रकाश तिवारी
(5 अक्टूबर, 2016)

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