Sunday, July 3, 2016

भेड़िया आया


----
भेड़िया आया
बचाओ
भेड़िया आया !
कब तलक यह हाँक दोगे
और दौड़ेगा
बचाने को समूचा गाँव,
कब तलक चलते रहोगे
घिस चुका
बरसों पुराना दावँ;
जानते हैं गाँववाले अब
तुम्हारी
छल पगी माया !
मित्रवर, तुम खे रहे हो
एक कागज़ की
तिलस्मी नाव,
भ्रम न पालो - दूर तक
चलते रहेंगे
झूठ के ये पावँ ;
सूर्य के ढलते समय ही
दीर्घ होता है
सदा इंसान का साया !
छोड़ भी दो यार अब
ओढ़ा हुआ
दोहरा चरित्तर,
लोग अपनी दुर्दशाओं का
तुम्हीं से
लेंगे उत्तर ;
क्या कहोगे तब, जरा
सोचो-विचारो
ऐ मेरे भाया ।
- ओमप्रकाश तिवारी

No comments:

Post a Comment