Sunday, October 4, 2015

माँ तुम ऐसा रूप धरो


दुर्गे
दुर्गा शक्ति बनो तुम
मन बनना इंद्राणी।
बेशक, हम सबको भाती है
नई चेतना सारी,
नहीं चाहते आधी दुनिया
रहे सदा बेचारी ;
बनो
इंदिरा, विजयलक्ष्मी
या झाँसी की रानी ।
अष्टभुजी बहुशस्त्र सजी
कर रक्तिम खप्परवाली,
दानव के सीने पर हो पग
क्रोधमयी माँ काली ;
सनी लियोनी
जैसी प्रतिमा 
मत गढ़ना कल्याणी।
माँ तुम ऐसा रूप धरो
ना नजरें हों शर्मिंदा,
ध्वज भी तेरा फर-फर फहरे
मर्यादा हो जिंदा ;
श्रद्धा
उपजे, नहीं वासना में
डूबा हो प्राणी।
- ओमप्रकाश तिवारी

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