ऊँ
....
सुबह अचानक
बेटे ने जब
छुए हमारे पावं।
बेटे ने जब
छुए हमारे पावं।
नयन तरल हो उठे
द्रवित था हृदय
रुद्ध आवाज,
सोच रहा था
पश्चिम से क्यों
सूरज निकला आज;
द्रवित था हृदय
रुद्ध आवाज,
सोच रहा था
पश्चिम से क्यों
सूरज निकला आज;
मन में सोचा
खेल रहा है
पैसे के हित दावं।
खेल रहा है
पैसे के हित दावं।
ना होली-ना दीवाली
ना और
कोई त्यौहार,
जन्मदिवस
में बाकी इसके
अभी महीने चार;
ना और
कोई त्यौहार,
जन्मदिवस
में बाकी इसके
अभी महीने चार;
फिर कैसे
इस जेठ दुपहरी
दिखी बादली छावं।
इस जेठ दुपहरी
दिखी बादली छावं।
तभी चाय की
चुस्की के संग
जब पलटा अखबार,
'पितृ दिवस' की
कुछ ख़बरों से
नयन हुए दो-चार;
चुस्की के संग
जब पलटा अखबार,
'पितृ दिवस' की
कुछ ख़बरों से
नयन हुए दो-चार;
तब समझा
नवपीढ़ी की है
सही दिशा में नाव।
नवपीढ़ी की है
सही दिशा में नाव।
- ओमप्रकाश तिवारी
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