क्यों न फटे धरा की छाती,
छलके सागर, गिरें पहाड़ ।
छलके सागर, गिरें पहाड़ ।
दुःशासन की भाँति
धरा की चीर खींचते
हम न लजाए,
वृक्ष बुजुर्गों ने
जो पोसेे
सारे हमने काट गिराए;
धरा की चीर खींचते
हम न लजाए,
वृक्ष बुजुर्गों ने
जो पोसेे
सारे हमने काट गिराए;
किस करनी पर प्रकृति करेगी
बोलो-बोलो हमसे लाड़ !
बोलो-बोलो हमसे लाड़ !
भूल गए हम
कृष्ण सखा संग
गोवर्द्धन पूजन की गाथा,
फैशन सा
बन गया रौंदना
रोज-रोज अब सागरमाथा;
कृष्ण सखा संग
गोवर्द्धन पूजन की गाथा,
फैशन सा
बन गया रौंदना
रोज-रोज अब सागरमाथा;
मस्त हुआ जाता है मानुष
एवरेस्ट पर झंडे गाड़।
एवरेस्ट पर झंडे गाड़।
रोका नहीं
यहाँ भी हमने,
अपना विश्वविजय का घोड़ा,
बाँध दिए तटबंध
नदी को
जैसा चाहा, वैसा मोड़ा;
यहाँ भी हमने,
अपना विश्वविजय का घोड़ा,
बाँध दिए तटबंध
नदी को
जैसा चाहा, वैसा मोड़ा;
देखो-देखो हमने बीघों
रत्नाकर को दिया पछाड़।
रत्नाकर को दिया पछाड़।
- ओमप्रकाश तिवारी
sarthak rachna...
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