Thursday, June 6, 2013

सूर्य से नजरें मिलाकर

सूर्य से
नजरें मिलाकर
बात करना चाहता हूँ ।

तेज है उसका प्रबल
इस बात का
अहसास है,
तपन में
महसूस होती
जानलेवा त्रास है;

अनुसरण
सूरजमुखी का
फिर भी करना चाहता हूं ।

जानता हूँ
सात घोड़ोंवाला
रथ भी खास है,
राजपथ सा
रौंदता दिखता
वो नित आकाश है ;

भव्यता के
इस बवंडर
से उबरना चाहता हूँ ।

रश्मियों से बनी
वल्गा, हाथ में
निज थाम कर,
हौसले को
स्वयं अपने
कोटि-कोटि प्रणाम कर ;

सारथी बन
साथ उसके
मैं विचरना चाहता हूँ ।

( 06 जून, 2013)

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