Saturday, May 18, 2013

खिड़कियाँ खोलो

खिड़कियाँ खोलो
हवा
ताजी मिलेगी ।

बंद दरवाजे
सभी
दीवार ऊँची,
एक कमरा
बन गया
दुनिया समूची;

इस घुटन में
जिंदगी
कैसे चलेगी ।

है सुखद
अनुभूति
दरिया की रवानी,
रुक गया तो
शीघ्र
सड़ जाता है पानी;

कुमुदिनी
निर्मल
सरोवर में खिलेगी।

मुस्कराओ
तुम
दिखाओ गर्मजोशी,
अजनबी भी
हो अगर
अपना पड़ोसी;

बर्फ तो कुछ
प्रेम
पाकर ही गलेगी ।

(18 मई, 2013)

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