मरा नयन का नीर
जिन पर सब
दारोमदार था
खुद से ज्यादा
ऐतबार था
रक्षा का व्रत
लिया जिन्होंने
मेरे आगे
बार-बार था
खींच रहे वो चीर
खुद को
अक्षर ज्ञान नहीं है
मर्यादा का
ध्यान नहीं है
पाँच बरस के बाद
स्वयं की
किस्मत का भी
भान नहीं है
लिखते वो तकदीर
भूखी है
आधी आबादी
उन्नति की
हो रही मुनादी
मेहनतकश के
हाथ कटोरा
भरे पेटवालों
की चाँदी
उड़ा रहे वो खीर
( 6 जनवरी, 2012)
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