Wednesday, December 18, 2019

बिना तपे

ऊँ
.....
बिना तपे
कुछ ठोकर खाए
कहाँ सफल इंसान बना है !
सोने का चम्मच
ले मुँह में
जन्में राम अयोध्यावासी,
गाथा उनकी
गाई जाती
जो प्रभु भटके हो वनवासी ;
बिना लड़े
जग की कुनीति से
कौन, कहाँ भगवान बना है !
देवालय में
सुंदर प्रतिमा
बड़े भाव से पूजी जाती,
धूप-दीप अरु
पुष्प चढ़ाकर
दुनिया उसको शीश नवाती ;
संगतराश की
चोट सहे बिन
कहाँ पूज्य पाषाण बना है !
याद करो
सागर मंथन को
अमृत घट थे देव ले उड़े,
एक बूँद
पाने की खातिर
अपनी शक पर दैत्य भी लड़े
बिना गरल को
गले उतारे
कौन भला गणनाथ बना है !
- ओमप्रकाश तिवारी
(19 दिसंबर, 2019)

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