Monday, January 29, 2018

धर्मा

रुख्सत होते जाएं
धर्मा जैसे कई किसान,
किंतु न टेढ़ी होने पाए
राजा जी की शान।

सत्ता बदले, नेता बदले
हो राहत का शोर,
किंतु न बदले अखबारों में
मौतों का स्कोर;

राज किसी का आए-जाए
स्थिति रहे समान।

जाने कब अधिग्रहण सूचना
दे निकाल सरकार,
फीता ले पटवारी आए
दे दे गहरी मार;

स्वेद बहाए जो धरती पर
उसकी सस्ती जान।

इधर कर्ज का बोझ चढ़ा है
उधर न मिलते भाव,
बेटी बढ़ती जाय कुँआरी
हँसता सारा गाँव;

माँ समझा मिट्टी को, उसमें
मिले आज अरमान।

- ओमप्रकाश तिवारी

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