Monday, February 13, 2017

चिरैया

सावधान हो विचर चिरैया
यहाँ घूमते बाज।
कदम-कदम पे मानुष रहते
फिर भी जग सुनसान,
पता न चलता कौन देवता
किसके मन हैवान ;
जाने कौन रोक दे आकर
कब तेरा परवाज़।
आसमान छूने का तू है
बैठी पाल जुनून,
लेकिन इस नगरी में चलता
जंगल का कानून ;
आज यहाँ कल वहाँ गिर रही
तुझ जैसों पे गाज।
देख चिरैया ! इस जंगल में
दिन में भी अँधियार,
अक्सर घात लगाकर अपने
ही करते हैं वार ;
क्षण भर में देते बिगाड़ वो
जीवन भर का साज।
- ओमप्रकाश तिवारी

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